25 नवम्बर 2021 रविवार
एक बहुत पुरानी कहावत है कि “अध जल गगरी छलकत जाए” यानि जैसे मटका आधा खाली होने पर उसमें से जल छलकता रहता है ठीक वैसे ही अधुरा ज्ञान होने पर व्यक्ति नसमझ और भ्रमित करने वाली बातें करता रहता है।यहां पर यह कहावत पारम्परिक मीडिया और पारम्परिक निवेश की सलाह देने वालों पर खरी उतरती है।जिस तरह से एक खास समुदाय बिटकाॅइन और क्रिप्टो के बारे में अपनी राय रखता है उसे देख कर लगता है की यह 21वी सदी में अभी तक प्रवेश नहीं कर पाएं हैं और पुरानी और रुढिवादी सोच के साथ जुड कर आज भी बाबा आदम के जमाने की बाते और निवेश की सलाह दे रहे हैं।जब दिमाग ही बंद होगा तो बिटकाॅइन, क्रिप्टो और ब्लॉकचेन के फायदे लिखेंगे कैसे?
बिटकॉइन को बाज़ार में आए हुए 12 साल हो चुके हैं।इन 12 सालों में बिटकाॅइन को देख कर ब्लॉकचेन और क्रिप्टो की दुनिया में अभूतपूर्व प्रगति हुई है।खरबों डालर का हो गया है क्रिप्टो क्षेत्र।आज माइक्रो स्ट्रेटजी जैसी बडी कम्पनी बिटकाॅइन में निवेश कर रही है बल्कि अपने कर्मचारियों को वेतन भी बिटकाॅइन में ही दे रही है।टेस्ला जैसा दुनिया का बडा ब्रांड अपनी पूंजी को डॉलर में सुरक्षित न मान कर बिटकाॅइन में निवेश कर रहा है।अब सोचने वाली बात यह है की इतनी बडी कम्पनी जब किसी आर्थिक विषय पर निर्णय लेती होगी तो वह अपने आर्थिक मामलों के सलाहकारों से विचार-विमर्श करने के बाद ही इस नतीजे पर पहुंचती होगी।ऐसे में समाचार पत्रों में अपनी पुरानी सोच के साथ पुराने निवेश की सलाह देने वाले अपनी संकुचित सोच के साथ इस विषय पर जब कोई राय देते हैं तो यह हास्यास्पद लगता है।अगर इनकी सोच परिपक्व होती तो यह आज अखबार में हर रविवार अपने आर्टिकल प्रकाशित करवाने में समय व्यर्थ न करते हुए अपनी जिंदगी में कुछ बेहतर कर रहे होते।
इनको लगता है की हर वह व्यक्ति जो बिटकाॅइन में लेनदेन करता है या क्रिप्टो में निवेश करता है वह अंतराष्ट्रीय स्तर का डॉन है और अंडरवर्ल्ड के गठजोड़ के साथ काम कर रहा है!क्रिप्टो में निवेश करने वाला इनकी नज़र में कालाबाजारी करने वाला,ब्लैकमनी का सरगना,आतंकवाद को निवेश देने वाला और देश का दुश्मन है।25 अप्रैल 2021 को दैनिक जागरण में एक लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था “बिटकॉइन के लाभ का पता नहीं,हानि का अंत नही”।इस आर्टिकल में जो विचार हैं वह धीरेंद्र कुमार के हैं जो सीईओ हैं वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन डॉट कॉम के।अब आप सोच सकते हैं की वैल्यू रिसर्च की जानकारी देने वाले के आर्टिकल का शीर्षक ही आपको बता देगा की इन्हें कितना ज्ञान है?यह कोरोना के बीच बिटकाॅइन को एक कहानी कह रहे हैं,शायद इनकी वैल्यू रिसर्च हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के समय की है।इनका कहना है की 14 अप्रैल को कॉइन बेस के आईपीओ से संस्थापकों ने मोटा मुनाफा कमाया लेकिन इसके बाद स्टॉक का दौर उतना अच्छा नहीं रहा।यह कैसे आर्थिक सलाहकार हैं जो एक हफ्ते में ही किसी स्टॉक के सफल या असफल होने का प्रमाण पत्र जारी कर रहे हैं?इनके अनुसार स्टॉक बाजरा में निवेशकों की हर दिन दिवाली होती है।इन्होंने एक खबर का हवाला देते हुए किसी क्रिकेटर को भारत के किसी सट्टेबाज ने जरूरी जानकारी के लिए बिटकाॅइन से राशी दी।इसके बाद इन्होंने किसी कंपनी के सिस्टम हैक करने के बदले बिटकाॅइन में पैमेंट लेने की बात कही।अब धीरेंद्र जैसे लोग इन बातों का हवाला दे कर यह बताने की कोशिश करते हैं की बिटकाॅइन इसी तरह के कामों के लिए बना है।इसके साथ ही यह बुद्धिजीवी कहते हैं की बिटकाॅइन को माइन करने वाली मशीने हर साल 178 टेरावाट बिजली का इस्तेमाल करती हैं और एक तरफ हम कार्बन फुटप्रिंट और क्लाइमेट इमरजेन्सी की बात करते हैं।वहीं दुसरी तरफ एक ऐसी मुद्रा को बनाने के लिए हम उर्जा को बर्बाद कर रहे हैं जिसका इस्तेमाल सिर्फ गैरकानूनी तरीके से किया जाता है।अब कोई धीरेंद्र को कैसे बताए की आप जिन नोटों की बात करते हो इन्हें एक जगह से दुसरी जगह ले जाने,इन्हें छापने,इनके लिए एटीएम मशीनों और वहां लगे एसी,बैंक और वहां इस्तेमाल की जाने वाली बिजली और एसी से कार्बन की जगह शुद्ध ऑक्सीजन नहीं निकलती।बिटकाॅइन से कहीं ज्यादा प्रकृति को नुक्सान आपका वह समाचार पत्र और इसे छापने की प्रक्रिया पहुंचाती है जिसमें आपके आर्टिकल प्रकाशित होते हैं। जिस कोरोना की बात आप कर रहें हैं इसे फैलाने के लिए आपके देश की मुद्रा बहुत सहयोग कर रही है जो वायरस को एक जगह से दुसरी जगह फैला रही है।
आगे यह पुरानी सोच वाले लिखते हैं कि “सरकार सरकार जल्द क्रिप्टो पर प्रतिबन्ध लगाने वाली है लेकिन अभी सरकार की प्राथमिकता कुछ और है”।सरकार की प्राथमिकता क्या है?पहले चीन से देश को खतरा था तो सरकार वहां व्यस्त थी,फिर कोरोना ने देश को नुक्सान पहुंचाया तो सरकार वहां व्यस्त है।किसान आंदोलन चर रहा है,चुनाव है सरकार वहां व्यस्त है।यह सही है क्योंकि सरकार भी जानती है की क्रिप्टो से देश और देश की अर्थव्यवस्था को कोई नुक्सान नहीं है इस लिए इस पर जल्दीबाजी में कानून बनाने की जरूरत नहीं है।धीरेंद्र कुमार को यह नहीं पता की बिटकाॅइन और क्रिप्टो कोई करेंसी नहीं है और न ही इससे देश की मुद्रा को कोई नुक्सान है लेकिन इससे निवेश की सलाह देने वाले उन लोगों को नुक्सान जरूर है जो बैंक एफडी,म्युचल फंड से आगे निवेश के बारे में न तो सोचते हैं और नही सलाह दे सकते हैं।इन्हें लगता है की 2009 से पहले राम राज्य था जहां पर न तो आतंकवाद था,न ही हवाला करोबार था,न काला धन था,न नकली नोट थे,न फिरौती मांगी जाती थी लेकिन बिटकाॅइन और क्रिप्टो ने यह सब पैदा कर दिया।हर दिन नकली नोट पकडे जाते हैं जिससे देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुक्सान हो रहा है यह इस बारे में कभी नहीं बोलेंगे।
बात यह है की आजकल जिसकी दुकान नहीं चल रही वह बिटकाॅइन के बारे में कुछ बोल कर या लिख कर सस्ती और घटिया लोकप्रियता लेने का काम कर रहा है।और यह लेख भी इसी मानसिकता का एक उदाहरण है।यह कभी यह क्यों नहीं लिखते की क्रिप्टो ने कोरोना काल में लाखों लोगों को नौकरीयां और ट्रेडिंग करने वालों को भूखा मरने से बचाया है?इनको शायद पता ही नहीं है की क्रिप्टो एक्सचेंजस के वाई सी के नियमों का पालन करती है और सभी निवेश का लेखा-जोखा भी रखती है।इनको पता ही नहीं है की भारतीय क्रिप्टो एक्सचेंज और क्रिप्टो प्रोजेक्ट को आज दुनिया में सफलता का पैमाना माना जाता है।यह शायद यह जानते ही नहीं की क्रिप्टो एक्सचेंजस आज कितना टैक्स दे रही है इनको पता ही नहीं की सरकार के कानून न बनाने से सरकारी खजाने को कितना नुक्सान हो रहा है?समाचार पत्रों में आर्टिकल आने से कोई आर्थिक सलाह देने वाला नहीं बन जाता।एक आर्टिकल लिखने के लिए इन्हें पैसा मिलता है और यह बिना ज्ञान के कुछ भी लिख देते हैं।पारम्परिक निवेश की सलाह देने वालों को बिटकाॅइन और क्रिप्टो के प्रति जो मानसिक रोग लगा है,इसका इलाज जल्द करवा लेना चाहिए नहीं तो यह अपना नुक्सान तो करेंगे ही साथ ही अपने फोलोअर्स को भी कहीं का नहीं छोडेंगे।
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